उत्तर प्रदेश में छात्रसंघ चुनावों से प्रतिबंध हट गया है। मायावती को लगा कि सपा छात्रसंघ चुनाव की बहाली के बहाने राज्य में युवाओं में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इसी डर से आखिरकार मायावती ने छात्रसंघ चुनाव पर रोक हटा दी है। मैंने इससे पहले एक लेख लिखा था कि किस तरह से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान छात्रों की शख्सियत में राजनीतिक गंभीरता अपने आप समाहित हो जाती है। इस पर अनिलजी और घुघूती जी की जो टिप्पणियां आईं। उसे मैं यहां डाल रहा हूं।
अनिल रघुराज said...
विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान हर छात्र को किसी न किसी छात्र संगठन से ज़रूर जुड़ना चाहिए। एकदम सही बात कही आपने। लेकिन हमारी मुख्यमंत्री माया मेमसाहब तो छात्र राजनीति को ही समाप्त करने पर अड़ी हैं।
Mired Mirage said...
यह लेख बहुत ग्यानवर्धक रहा व मुझ जैसे लोगों, जिनका राजनीति से कोई दूर का नाता भी नहीं रहा, को भी इस विषय पर सोचने को बाध्य करता है ।
घुघूती बासूती
अब मायावती ने छात्रसंघ चुनाव पर से रोक तो हटा दी। लेकिन, ये विश्वविद्यालयों के साथ ही छात्रों को भी देखना होगा कि उनके चुने नेता ऐसा (कु)कर्म न करने लगें कि फिर से राज्य की सत्ता चलाने वालों को लोकतंत्र की शुरुआती कक्षाओं को बंद करने का मौका मिल जाए।
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3 comments:
बस संयम की आवश्यक्ता है मगर आगे आगे देखिये होता है क्या.
आपका प्रयास सराहनीय है। मेरी हार्दिक शुभ्कामनाएं।
Bahujan student front ab aage aayega
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