Tuesday, May 25, 2010

मीडिया का अछूत गांधी

इस गांधी की चर्चा मीडिया में अकसर ना के बराबर होती है और अगर होती भी है तो, सिर्फ और सिर्फ गलत वजहों से। मीडिया और इस गांधी की रिश्ता कुछ अजीब सा है। न तो मीडिया इस गांधी को पसंद करता है न ये गांधी मीडिया को पसंद करता है। इस गांधी के प्रति मीडिया दुराग्रह रखता है। किस कदर इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के पहले परिवार से निकले इस गांधी के भाई राहुल गांधी के श्रीमुख से कुछ भी अच्छा बुरा निकले तो, मीडिया उसे लपक लेता है और अच्छा-बुरा कुछ भी करके चलाता रहता है। जब ये दूसरा गांधी यानी वरुण गांधी कहता है कि उत्तर प्रदेश में 2012 में बीजेपी सत्ता में आएगी और हम सत्ता में आए तो, मायावती की मूर्तियां हटवाकर राम की मूर्तियां लगवाएंगे तो, किसी भी न्यूज चैनल पर ये टिकर यानी नीचे चलने वाली खबर की पट्टी से ज्यादा की जगह नहीं पाती है लेकिन, जब मायावती के खिलाफ देश के पहले परिवार का स्वाभाविक वारिस यानी राहुल गांधी मायावती के खिलाफ कुछ भी बोलता है या कुछ नहीं भी बोलता है तो, भी सभी न्यूज चैनलों पर बड़ी खबर बन जाती है यहां तक कि हेडलाइंस भी होती है।
वरुण गांधी को ये बात समझनी होगी कि आखिर उसके अच्छे-बुरे किए को मीडिया तवज्जो क्यों नहीं देता। वरुण को ये समझना होगा कि जाने-अनजाने ये तथ्य स्थापित हो चुका है कि उनका चचेरा भाई राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की उस विरासत को आगे बढ़ा रहा है जो, गांधी-नेहरु की असली विरासत मानी जाती है। वो, राजीव गांधी जो नौजवानों के सपने का भारत बनाना चाहता था लेकिन, जिसकी यात्रा अकाल मौत की वजह से अधूरी रह गई। लेकिन, जब वरुण गांधी की बात होती है तो, सबको लोकसभा चुनाव के दौरान वरुण गांधी का मुस्लिम विरोधी भाषण ही याद आता है। और, तुरंत याद आ जाता है कि ये संजय गांधी का बेटा है जो, जबरदस्ती नसबंदी के लिए कुख्यात था। यहां तक कि आपातकाल का भी पूरा ठीकरा संजय गांधी के ही सिर थोप दिया जाता है। मीडिया ये तो कहता है कि आपातकाल ने इंदिरा की सरकार गिरा दी, कांग्रेस को कमजोर कर दिया। लेकिन, मीडिया आपातकाल के पीछे के हर बुरे कर्म का जिम्मेदार संजय गांधी को ही मानता है। यहां तक कि कांग्रेस में रहते हुए भी संजय गांधी सांप्रदायिक और अछूत गांधी बन गया। राजीव की कंप्यूटर क्रांति की चर्चा तो खूब होती है लेकिन, देश की सड़कों पर हुआ सबसे बड़ी क्रांति मारुति 800 कार के जनक संजय गांधी को उस तरह से सम्मान कभी नहीं मिल पाया।

और, फिर जब वरुण गांधी बीजेपी के जरिए लोकतंत्र में सत्ता की ओर बढ़ने की कोशिश करने लगा फिर तो, वरुण के ऊपर पूरी तरह से अछूत गांधी का ठप्पा लग गया। इसलिए वरुण को समझना होगा कि इस देश का मूल स्वभाव किसी भी बात की अति के खिलाफ है। फौरी उन्माद में एक बड़ा-छोटा झुंड हो सकता है कि ऐसे अतिवादी बयानों से पीछे-पीछे चलता दिखाई दे लेकिन, ये रास्ता ज्यादा दूर तक नहीं जाता। इसलिए वरुण गांधी को दो काम तो तुरंत करने होंगे पहला तो ये कि मीडिया से बेवजह की दूरी बनाकर रखने से अपनी अच्छी बातें भी ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंचेंगी ये समझना होगा। हां, थोड़ी सी भी बुराई कई गुना ज्यादा रफ्तार से लोगों के दिमाग में स्थापित कराने में मीडिया मददगार होगा। दूसरी बात ये कि अतिवादी एजेंडे को पीछे छोड़ना होगा। जहां एक तरफ राहुल गांधी भले कुछ करे न करे- गरीब-विकास की बात कर रहा हो वहां, वरुण गांधी को राम की मूर्तियां कितना स्थापित करा पाएंगी ये समझना होगा। राम के नाम पर बीजेपी को जितना आकाश छूना था वो छू चुकी अब काम के नाम पर ही बात बन पाएगी।

ऐसा नहीं है कि वरुण गांधी को पीलीभीत से सिर्फ भड़काऊ भाषण की वजह से ही जीत मिली है। वरुण गांधी अपने क्षेत्र के हर गांव से वाकिफ हैं। राहुल के अमेठी दौरे से ज्यादा वरुण पीलीभीत में रहते हैं। लेकिन, वरुण के कामों की चर्चा मीडिया में बमुश्किल ही होती है। वरुण गांधी ने अपने लोकसभा क्षेत्र में 2000 गरीब बेटियों की शादी कराई ये बात कभी मीडिया में आई ही नहीं। जबकि, छोटे-मोटे नेताओं के भी ऐसे आयोजनों को मीडिया में थोड़ी बहुत जगह मिल ही जाती है। जाहिर है वरुण गांधी की मीडिया से दूरी वरुण गांधी के लिए घातक बन रही है।

वरुण गांधी से हुई एक मुलाकात में एक बात तो मुझे साफ समझ में आई कि कुछ अतिवादी बयानों और मीडिया से दूरी को छोड़कर ये गांधी अपने एजेंडे पर बखूबी लगा हुआ है। वरुण गांधी को ये अच्छे से पता है कि फिलहाल राष्ट्रीय राजनीति में नहीं उसकी परीक्षा उत्तर प्रदेश की राजनीति में होनी है। वरुण का लक्ष्य 2012 में होने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव है जिसमें वरुण बीजेपी को सत्ता में लाना चाहता है और खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहता है। वरुण के इस लक्ष्य को पाने में सबसे अच्छी बात ये है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी का कार्यकर्ता अभी के नेतृत्व से बुरी तरह से निराश है और उसे वरुण गांधी में एक मजबूत नेता नजर आ रहा है। बीजेपी में अपनी राजनीति तलाशने वाले नौजवान नेताओं को ये लगने लगा है कि वरुण गांधी ही है जो, फिर से बीजेपी के परंपरागत वोटरों में उत्साह पैदा कर सकता है। शायद यही वजह है कि 14 अशोक रोड पर उत्तर प्रदेश के हर जिले से 2-4 नौजवान नेता वरुण गांधी से मुलाकात करने पहुंचने लगे हैं।

वरुण गांधी के पक्ष में एक अच्छी बात ये भी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वरुण को यूपी बीजेपी का नेता बनाने का मन बना चुका है। वरुण गांधी को संघ प्रमुख मोहनराव भागवत का अंध आशीर्वाद भले न मिले लेकिन, अगर वरुण भविष्य के नेता के तौर पर और राहुल गांधी की काट के तौर पर खुद को मजबूत करते रहे तो, संघ मशीनरी पूरी तरह से वरुण के पीछे खड़े होने को तैयार है। वरुण गांधी को ये बात समझ में आ चुकी है यही वजह है कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष का पद न लेकर बीजेपी में राष्ट्रीय सचिव बनने के बाद भी वरुण सिर्फ और सिर्फ उत्तर प्रदेश के बारे में सोच रहे हैं।

अभी कुछ दिन पहले जब मीडिया में वरुण गांधी की तस्वीरें दिखीं थीं तो, सभी चैनलों पर यही देखने को मिला कि वरुण चप्पल पहनकर इलाहाबाद में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का माल्यार्पण करने चले गए थे। किसी भी अखबार या टीवी चैनल पर ये खबर देखने-पढ़ने को नहीं मिली कि वरुण जौनपुर में एक बड़ी रैली करके लौट रहे थे। राष्ट्रीय सचिव बनने के बाद ये वरुण की पांचवीं रैली थी और वरुण इस साल 20 और ऐसी रैलियां करके पूरे प्रदेश तक पहुंचने की कोशिश में हैं। अरसे बाद बीजेपी के जिले के नेताओं को ऐसा नेता मिला है जिसकी रैली के लिए बसें भरने में उन्हें ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ रहा है।

ये गांधी भारतीय राजनीति की लंबी रेस का घोड़ा दिख रहा है। लेकिन, वरुण को उग्र बयानों से हिंदुत्ववादी नेता बनने के बजाए बीजेपी का वो नेता बनने की कोशिश करनी होगी जो, जगह कल्याण सिंह के बाद उत्तर प्रदेश में कोई बीजेपी नेता भर नहीं पाया है। और, ये जगह अब राम की मूर्तियां लगाने वाले बयानों से नहीं उत्तर प्रदेश के नौजवान को ये उम्मीद दिखाने से मिल पाएगी कि राज्य में ही रहकर उसकी बेहतरी के लिए क्या हो सकता है। उत्तर प्रदेश के 18 करोड़ लोगों को एक नेता नहीं मिल रहा है। अगर वरुण ये करने में कामयाब हो गए तो, भारतीय राजनीति में एक अलग अध्याय के नायक बनने से उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। वरुण की उम्र अभी 30 साल के आसपास है और वरुण के पास लंबी राजनीति करने का वक्त भी है, गांधी नाम भी और बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी का बैनर भी। बस उन्हें खुद को अछूत गांधी बनने से रोकना होगा।

Thursday, December 25, 2008

मायावती, मुलायम को हर मामले में पीछे छोड़ देना चाहती हैं, नंगई में भी

मायाराज- जंगलराज का समानार्ती शब्द लगने लगा है। लेकिन, दरअसल ये जंगलराज से बदतर हो गया है। क्योंकि, जंगल का भी कुछ तो कानून होता ही है। 24 अगस्त को मैंने बतंगड़ ब्लॉग पर लिखा था कि गुंडे चढ़ गए हाथी पर पत्थर रख लो छाती पर लेकिन, अब ये जरूरी हो गया है कि हाथी पर चढ़े गुंडों को पत्थरों से मार गिराया जाए। क्योंकि, पहले से bimaru उत्तर प्रदेश की बीमारी अब नासूर बनती जा रही है। शुरू में जब अपनी ही पार्टी के अपराधियों को मायावती ने जेल भेजा तो, लगा कि मायाराज, मुलायम राज से बेहतर है। लेकिन, ये वैसा ही था जैसा नया भ्रष्ट दरोगा थाना संभालते ही पुराने बदमाशों को निपटाकर छवि चमकाता है और अपने बदमाश पाल-पोसकर बड़े करता है। पता नहीं अभी up (उल्टा प्रदेश) को और कितना उलटा होना बाकी है।

Saturday, June 14, 2008

मायाराज पहले के राज से तो बेहतर ही है

मायावती सरकार के पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव के खिलाफ आखिरकार गैरजमानती वारंट जारी हो गया। इसी हफ्ते में मायावती ने अपनी सरकार के एक और मंत्री जमुना प्रसाद निषाद को भी दबंगई-गुंडई के बाद पहले मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया। उसके बाद जमुना निषाद को जेल भी जाना पड़ा। इससे पहले भी मायावती की पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया था और उन्हें भी जेल जाना पड़ा था।

अब अगरउत्तर प्रदेश में कोई रामराज्य की उम्मीद लगाए बैठा है तो, इस दिन में सपने देखना ही कहेंगे। लेकिन, सारी बददिमागी और अख्कड़पन के बावजूद मुझे लगता है कि बरबादी के आलम में पहुंच गई उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था मायाराज में ही सुधर सकती है। ऐसा नहीं है कि मायाराज में सबकुछ अच्छा ही हो रहा है। लेकिन, इतना तो है ही कि मीडिया में सामने आने के बाद, आम जनता की चीख-पुकार, कम से कम मायावती सुन तो रही ही हैं।

मुझे नहीं पता कि मायावती के आसपास के लोग सत्ता के मद में कितनी तानाशाही कर रहे हैं। लेकिन, मायावती ने जिस तरह से कल राज्य के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को जिस तरह से लताड़ा है वो, इतना तो संकेत दे ही रहा है कि मायावती को ये पता है कि अगर इस बार मिला स्वर्णिम मौका उन्होंने गंवा दिया तो, उत्तर प्रदेश के विकट राजनीतिक, सामाजिक समीकरण में दुबारा शायद ही उन्हें अपने बूते सत्ता में आने का मौका मिले।
उन्होंने भरी बैठक में कहाकि
जब थाने बिकेंगे तो, जनता कानून हाथ में लेगी ही।
और, जनता कानून हाथ में तभी लेती है जब जनप्रतिनिधियों और कानून के रखवालों से उसे सही बर्ताव नहीं मिलता।

और, मायावती के इस कहे पर यकीन इसलिए भी करना होगा कि इसके दो दिन पहले ही मायावती की सरकार के एक मंत्री जमुना प्रसाद निषाद जेल जा चुके थे। उन पर थाने में घुसकर गंडागर्दी करने, गोलियां चलाने का आरोप है। इसी में थाने में ही एक सिपाही की मौत हो गई थी। इससे पहले बसपा सरकार के मंत्री आनंदसेन यादव को बसपा के एक कार्यकर्ता की बेटी के साथ संबंध बनाने के बाद उसकी हत्या का आरोप लगने के बाद पहले मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। और, अब गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है।

आनंदसेन के खिलाफ गैरजमानती वारंट और मंत्री पद से हटाया जाना ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि इसी घटना के आसपास यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार में एक बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। लेकिन, देश भर से प्रतिक्रिया होने के बाद भी अनंत सिंह का कुछ नहीं बिगड़ा। सिर्फ पत्रकारों की पीटने के लिए अनंत सिंह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात मैं नहीं कर रहा हूं। दरअसल वो पत्रकार अनंत सिंह से सिर्फ इतना पूछने गए थे कि एक लड़की ने मुख्यमंत्री को खत भेजकर अपनी जान का खतरा आपसे बताया है। साथ ही आप पर आरोप है कि आपने उस लड़की के साथ बलात्कार किया था। बस क्या था बिहार के छोटे सरकार गुस्से आ गए और पत्रकारों को दे दनादन शुरू हो गए। ये बता दें कि लालू के गुड़ों के मुकाबले नितीश के पास अनंत सिंह जैसे कुछ गिने-चुने ही गुंडे थे।

बस इतनी ही उम्मीद है कि मायावती ने राज्य के अधिकारियों को जो भाषण दिया है। वो खुद उस पर अमल करती रहेंगी।

Sunday, June 8, 2008

इलाहाबाद से बसपा एक और इतिहास बनाने की तैयारी में

उत्तर प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के बाद मैंने लिखा था कि आखिर लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश से क्या संकेत मिल रहे हैं। उन संकेतों की पुष्टि लोकसभा चुनाव 2009 की पार्टियों की तैयारियों से और स्पष्ट हो रहा है। बीजेपी ने पहली 250 लोकसभा उम्मीदवारों की सूची जुलाई में जारी करने का ऐलान किया है। लेकिन, बसपा ने तो, उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करना भी शुरू कर दिया।

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद की लोकसभा सीट हमेशा से बड़ी महत्व की मानी जाती रही है। ये सीट ज्यादातर देश और प्रदेश में किसी पार्टी की सत्ता का संकेत भी देती है। पिछले चुनाव में इलाहाबाद की दो महत्वपूर्ण सीटें इलाहाबाद और फूलपुर दोनों सपा के खाते में चली गई थी। इलाहाबाद से भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी को हराकर सपा के रेवती रमण सिंह सांसद हो गए। ये इलाहाबाद की बदकिस्मती इस मायने में थी कि इलाहाबाद लोकसभा की एक विधानसभा (करछना) के विधायक को जनता ने संसद तो पहुंचा दिया। लेकिन, संसद में पहुंचने के बाद रेवती रमण का कोई भी एक ऐसा काम नहीं दिखाई दिया जो, इलाहाबाद के विकास को आगे बढ़ाता। डॉक्टर जोशी के समय की कई बड़ी योजनाएं वापस चली गईं।

और, अब इस पर और दुखद खबर ये है कि तीन बार इलाहाबाद की सीट जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले डॉक्टर जोशी सिर्फ एक बार की हार के बाद सीट छोड़ रहे हैं। ये अब लगभग तय हो गया है कि डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब चर्चा है कि केशरी नाथ त्रिपाठी इसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इसी लोकसभा की शहर दक्षिणी सीट से छे बार जीतने वाले केशरी नाथ प्रदेश अध्यक्ष रहते बसपा के नंद गोपाल नंदी से हार चुके हैं। और, इलाहाबाद लोकसभा की बीजेपी के सबसे ज्यादा वोटबैंक मानी जाने वाली सीट इलाहाबाद से कटकर फूलपुर सीट में जुड़ रही है।

इलाहाबाद की दूसरी सीट फूलपुर से सपा से अतीक अहमद सांसद चुने गए थे। अब तो, जेल में हैं और सपा से निकाल दिए गए हैं। इस बार पता नहीं कैसे चुनाव लड़ेंगे। खैर, असली समीकरण अब बना है- हाल में ही भाजपा छोड़कर बसपा में जाने वाले कपिल मुनि करवरिया की वजह से। कपिलमुनि करवरिया, भाजपा विधानमंडल दल के मुख्य सचेतक उदयभान करवरिया के बड़े भाई हैं। इलाहाबाद से उदयभान करवरिया ही भाजपा के अकेले विधायक (बारा विधानसभा) हैं। सच्चाई ये है है कि डॉक्टर जोशी के साथ संबंध कुछ कम अच्छे होने की वजह से (टिकट न मिलने से ) कपिलमुनि करवरिया ने बसपा ज्वाइन कर लिया। ज्वाइनिंग के दिन ही बसपा ने कपिलमुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी घोषित कर दिया। शहर उत्तरी और नवाबगंज में ब्राह्मण वोटबैंक और कपिलमुनि के साथ भाजपा का एक बड़ा वोटबैंक शिफ्ट होने से ये सीट बसपा के लिए काफी आसान दिख रही है। अतीक के जेल में होने और बसपा की सरकार होने से तो मदद मिलेगी ही। और, बाहुबल में कपिलमुनि करवरिया भी कुछ कम तो हैं नहीं।

कपलिमुनि करवरिया के बसपा ज्वाइन कराने में अहम रोल अदा करने वाले पुराने कांग्रेसी नेता और अब बसपा की सरकार में लाल बत्ती पाने वाले अशोक बाजपेयी को उसी दिन इलाहाबाद लोकसभा सीट से बसपा ने प्रत्याशी बना दिया है। अशोक बाजपेयी के बेटे हर्षवर्धन बाजपेयी को बसपा ने शहर उत्तरी से टिकट दिया था और हर्षवर्धन हजार से भी कम वोटों से विधानसभा हार गए थे। वोटबैंक और इलाहाबाद और फूलपुर लोकसभा का परसीमन फिर से होने से बदले समीकरण से बसपा दोनों लोकसभा सीटों पर सबसे बेहतर प्रत्याशी खड़ा करने में कामयाब हो चुकी है। और, ये संकेत सफल हुए तो, इलाहाबाद की दोनों सीट जातकर बसपा नया इतिहास बनाएगी। साथ ही मेरा ये अनुमान और पक्का हो रहा है कि बसपा को इस बार 35-45 सीटें तो मिलेंगी ही।

Friday, May 2, 2008

इलाहाबाद बैंक बनेगा राष्ट्रीय धरोहर

इलाहाबाद में इलाहाबाद बैंक की मुख्य शाखा अब राष्ट्रीय धरोहर बनेगी। पुराने जमाने के महल की सी इस इमारत का वो स्वरूप अब भी बरकरार है। और, इसी को देखते हुए इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज ने ये बैंक की इमारत को राष्ट्रीय धरोहर बनाने का प्रस्ताव इलाहाबाद बैंक के कोलकाता मुख्यालय को भेजा है।

यज्ञदत्त शर्मा तीसरी बार चुनाव जीते

यज्ञदत्त शर्मा इलाहाबाद झांसी शिक्षक स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीत गए हैं। ये उनकी लगातार तीसरी जीत है। यज्ञदत्त शर्मा को चूंकि मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं। इसलिए इस जीत की खुशी थोड़ा ज्यादा है। अभी मैं इलाहाबाद गया था तो, मिलित (यज्ञदत्तजी की बिटिया) दुबई से आई हुई थी। मिलित को बेटा हुआ है। और, मैं अपनी पत्नी के साथ मिलने गया था। शर्माजी तो प्रचार में थे मुलाकात नहीं हुई।

यज्ञदत्तजी लगातार तीन बार से विधायक हो रहे हैं लेकिन, कभी भी उनके घर जाने पर ऐसा नहीं लगा कि किसी वीआईपी के घर पहुंच गए हों। सामान्य जीवन शैली है। लोगों से संपर्क। इलाहाबाद-झांसी में शिक्षकों और स्नातकों से इतना सलीके से मेल मिलाप शायद ही किसा हो। और, यही वजह भी रही कि दूसरे प्रत्याशियों की काफी मशक्कत के बाद भी शर्माजी अच्छे अंतर से जीते। बीजेपी के दूसरे नेताओं को उनसे कुछ सीखना चाहिए। उन्हें ढेर सारी बधाई।

Thursday, April 17, 2008

2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती को 35-45 सीट मिलेगी

मायावती के मस्त हाथी की चाल के आगे सबको रास्ता छोड़ना पड़ा। उत्तर प्रदेश के आधार के भरोसे दिल्ली फतह करने का इरादा रखने वाली मायावती को राज्य के उपचुनावों ने और बल दिया होगा। आजमगढ़ लोकसभा सीट से बसपा के अकबर अहमद डंपी ने भाजपा के टिकट पर लड़े दागी रमाकांत यादव को 54 हजार से ज्यादा मतो से हरा दिया। डंपी ने इससे पहले भी बसपा के ही टिकट पर रमाकांत यादव को हराया था। ये अलग बात है कि 1998 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत किसी गंभीर रोग से ग्रसित मरीज के लिए दी जाने वाली आखिरी दवा के रिएक्शन (उल्टा असर) कर जाने जैसी हो गई है। राजनाथ सिंह ने कैडर, कार्यकर्ताओं को दरकिनारकर चुनाव एक लोकसभा सीट जीतने के लिए रमाकांत जैसे दागी को टिकट दिया लेकिन, फॉर्मूला फ्लॉप हो गया।

दूसरी लोकसभा सीट भी बसपा की ही झोली में गई है। खलीलाबाद लोकसभा सीट से भीष्मशंकर तिवारी ने 64,344 मतों से सपा के भालचंद्र यादव को हरा दिया है। भीष्मशंकर (कुशल तिवारी) लोकसभा तक पहुंचने में कामयाब हो गए। खलीलाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा चौथे नंबर पर चली गई है। भीष्मशंकर, चतुर राजनीतिज्ञ हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे हैं। और, इससे पहले 1998 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। हरिशंकर के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी इससे पहले बसपा के ही टिकट पर बलिया लोकसभा उपचुनाव हार चुके हैं। ये अलग बात है कि बलिया में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर की जीत पूरी तरह से भावनात्मक जीत थी। सबसे दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा चुनाव में खुद हरिशंकर तिवारी अपनी परंपरागत चिल्लूपार विधानसभा सीट बसपा के ही राजेश तिवारी के हाथों गंवाकर दशकों बाद पहली बार विधानसभा में जाने से रोक दिए गए।

विधानसभा सीटों में भी हाथी ने सबको रौंद दिया है। तीनो उपचुनाव के संकेत दिखा रहे हैं कि बसपा के बाद चल रही सपा से भी फासला बढ़ा है। भाजपा तो, तीसरे-चौथे नंबर पर पहुंच गई है। भाजपा बिलग्राम में तीसरे और कर्नलगंज में चौथे नंबर पर रही है। जबकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद की मुरादनगर सीट पर तो, चौथे नंबर पर भी उसे जगह नहीं मिल सकी हैं। इस सीट पर लोकदल के अयूब खां दूसरे नंबर पर हैं।

मैंने अभी कुछ दिन पहले भी लिखा था कि उत्तर प्रदेश में अब तक विधानसभा चुनाव के समय के समीकरण बदले नहीं हैं। और, उत्तर प्रदेश की तीन विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर बसपा के जोरदार कब्जे से ये साफ भी हो गया है। भाजपा आजमगढ़ को छोड़कर सभी जगह तीसरे नंबर पर रही है। मायावती के तानाशाही रवैये का हवाला देकर प्रदेश में मायावती के विरोधी ये कहने लगे थे कि अब जनता मायाराज के खिलाफ हो रहा है लेकिन, सच्चाई यही है कि मायाजाल बढ़ता ही जा रही है। और, अब तो इस बात की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की चाभी उसी को मिलेगी जिसको मायावती का साथ मिले।
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव
अकबर अहमद डंपी (बसपा)- 2,27,340 मत
रमाकांत यादव (भाजपा)- 1,73,089 मत
बलराम यादव (सपा)- 1,56,621 मत
एहसान खां (कांग्रेस)- 11,210 मत

खलीलाबाद लोकसभा उपचुनाव
भीष्म शंकर तिवारी (बसपा)- 2,18,393 मत
भालचंद्र यादव (सपा)- 1,53,761 मत
संजय जायसवाल (कांग्रेस)- 94,565 मत
चंद्रशेखर पांडे (भाजपा)- 60,384 मत

बिलग्राम विधानसभा उपचुनाव
रजनी तिवारी (बसपा)- 92,196 मत
विश्राम यादव (सपा)- 54,088 मत
यदुनंदन लाल (भाजपा)- 8,168 मत
सुरेश चंद्र तिवारी (कांग्रेस)- 2,766 मत

कर्नलंगज विधानसभा उपचुनाव
बृज कुंवरि सिंह (बसपा)- 50,283 मत
योगेश प्रताप सिंह (सपा)- 40,546 मत
रामा मिश्रा (कांग्रेस)- 21,478 मत
कृष्ण कुमार (भाजपा)- 4,387 मत

मुरादनगर विधानसभा उपचुनाव
राजपाल त्यागी (बसपा)- 58,687 मत
अयूब खां (लोकदल)- 51,834 मत
मनीष (सपा)- 12,850 मत
प्रदीप त्यागी (कांग्रेस)- 5,030 मत