Saturday, June 14, 2008

मायाराज पहले के राज से तो बेहतर ही है

मायावती सरकार के पूर्व मंत्री आनंदसेन यादव के खिलाफ आखिरकार गैरजमानती वारंट जारी हो गया। इसी हफ्ते में मायावती ने अपनी सरकार के एक और मंत्री जमुना प्रसाद निषाद को भी दबंगई-गुंडई के बाद पहले मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया। उसके बाद जमुना निषाद को जेल भी जाना पड़ा। इससे पहले भी मायावती की पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया था और उन्हें भी जेल जाना पड़ा था।

अब अगरउत्तर प्रदेश में कोई रामराज्य की उम्मीद लगाए बैठा है तो, इस दिन में सपने देखना ही कहेंगे। लेकिन, सारी बददिमागी और अख्कड़पन के बावजूद मुझे लगता है कि बरबादी के आलम में पहुंच गई उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था मायाराज में ही सुधर सकती है। ऐसा नहीं है कि मायाराज में सबकुछ अच्छा ही हो रहा है। लेकिन, इतना तो है ही कि मीडिया में सामने आने के बाद, आम जनता की चीख-पुकार, कम से कम मायावती सुन तो रही ही हैं।

मुझे नहीं पता कि मायावती के आसपास के लोग सत्ता के मद में कितनी तानाशाही कर रहे हैं। लेकिन, मायावती ने जिस तरह से कल राज्य के पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को जिस तरह से लताड़ा है वो, इतना तो संकेत दे ही रहा है कि मायावती को ये पता है कि अगर इस बार मिला स्वर्णिम मौका उन्होंने गंवा दिया तो, उत्तर प्रदेश के विकट राजनीतिक, सामाजिक समीकरण में दुबारा शायद ही उन्हें अपने बूते सत्ता में आने का मौका मिले।
उन्होंने भरी बैठक में कहाकि
जब थाने बिकेंगे तो, जनता कानून हाथ में लेगी ही।
और, जनता कानून हाथ में तभी लेती है जब जनप्रतिनिधियों और कानून के रखवालों से उसे सही बर्ताव नहीं मिलता।

और, मायावती के इस कहे पर यकीन इसलिए भी करना होगा कि इसके दो दिन पहले ही मायावती की सरकार के एक मंत्री जमुना प्रसाद निषाद जेल जा चुके थे। उन पर थाने में घुसकर गंडागर्दी करने, गोलियां चलाने का आरोप है। इसी में थाने में ही एक सिपाही की मौत हो गई थी। इससे पहले बसपा सरकार के मंत्री आनंदसेन यादव को बसपा के एक कार्यकर्ता की बेटी के साथ संबंध बनाने के बाद उसकी हत्या का आरोप लगने के बाद पहले मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। और, अब गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है।

आनंदसेन के खिलाफ गैरजमानती वारंट और मंत्री पद से हटाया जाना ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि इसी घटना के आसपास यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार में एक बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। लेकिन, देश भर से प्रतिक्रिया होने के बाद भी अनंत सिंह का कुछ नहीं बिगड़ा। सिर्फ पत्रकारों की पीटने के लिए अनंत सिंह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात मैं नहीं कर रहा हूं। दरअसल वो पत्रकार अनंत सिंह से सिर्फ इतना पूछने गए थे कि एक लड़की ने मुख्यमंत्री को खत भेजकर अपनी जान का खतरा आपसे बताया है। साथ ही आप पर आरोप है कि आपने उस लड़की के साथ बलात्कार किया था। बस क्या था बिहार के छोटे सरकार गुस्से आ गए और पत्रकारों को दे दनादन शुरू हो गए। ये बता दें कि लालू के गुड़ों के मुकाबले नितीश के पास अनंत सिंह जैसे कुछ गिने-चुने ही गुंडे थे।

बस इतनी ही उम्मीद है कि मायावती ने राज्य के अधिकारियों को जो भाषण दिया है। वो खुद उस पर अमल करती रहेंगी।

Sunday, June 8, 2008

इलाहाबाद से बसपा एक और इतिहास बनाने की तैयारी में

उत्तर प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों के बाद मैंने लिखा था कि आखिर लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश से क्या संकेत मिल रहे हैं। उन संकेतों की पुष्टि लोकसभा चुनाव 2009 की पार्टियों की तैयारियों से और स्पष्ट हो रहा है। बीजेपी ने पहली 250 लोकसभा उम्मीदवारों की सूची जुलाई में जारी करने का ऐलान किया है। लेकिन, बसपा ने तो, उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करना भी शुरू कर दिया।

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद की लोकसभा सीट हमेशा से बड़ी महत्व की मानी जाती रही है। ये सीट ज्यादातर देश और प्रदेश में किसी पार्टी की सत्ता का संकेत भी देती है। पिछले चुनाव में इलाहाबाद की दो महत्वपूर्ण सीटें इलाहाबाद और फूलपुर दोनों सपा के खाते में चली गई थी। इलाहाबाद से भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी को हराकर सपा के रेवती रमण सिंह सांसद हो गए। ये इलाहाबाद की बदकिस्मती इस मायने में थी कि इलाहाबाद लोकसभा की एक विधानसभा (करछना) के विधायक को जनता ने संसद तो पहुंचा दिया। लेकिन, संसद में पहुंचने के बाद रेवती रमण का कोई भी एक ऐसा काम नहीं दिखाई दिया जो, इलाहाबाद के विकास को आगे बढ़ाता। डॉक्टर जोशी के समय की कई बड़ी योजनाएं वापस चली गईं।

और, अब इस पर और दुखद खबर ये है कि तीन बार इलाहाबाद की सीट जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले डॉक्टर जोशी सिर्फ एक बार की हार के बाद सीट छोड़ रहे हैं। ये अब लगभग तय हो गया है कि डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। अब चर्चा है कि केशरी नाथ त्रिपाठी इसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इसी लोकसभा की शहर दक्षिणी सीट से छे बार जीतने वाले केशरी नाथ प्रदेश अध्यक्ष रहते बसपा के नंद गोपाल नंदी से हार चुके हैं। और, इलाहाबाद लोकसभा की बीजेपी के सबसे ज्यादा वोटबैंक मानी जाने वाली सीट इलाहाबाद से कटकर फूलपुर सीट में जुड़ रही है।

इलाहाबाद की दूसरी सीट फूलपुर से सपा से अतीक अहमद सांसद चुने गए थे। अब तो, जेल में हैं और सपा से निकाल दिए गए हैं। इस बार पता नहीं कैसे चुनाव लड़ेंगे। खैर, असली समीकरण अब बना है- हाल में ही भाजपा छोड़कर बसपा में जाने वाले कपिल मुनि करवरिया की वजह से। कपिलमुनि करवरिया, भाजपा विधानमंडल दल के मुख्य सचेतक उदयभान करवरिया के बड़े भाई हैं। इलाहाबाद से उदयभान करवरिया ही भाजपा के अकेले विधायक (बारा विधानसभा) हैं। सच्चाई ये है है कि डॉक्टर जोशी के साथ संबंध कुछ कम अच्छे होने की वजह से (टिकट न मिलने से ) कपिलमुनि करवरिया ने बसपा ज्वाइन कर लिया। ज्वाइनिंग के दिन ही बसपा ने कपिलमुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी घोषित कर दिया। शहर उत्तरी और नवाबगंज में ब्राह्मण वोटबैंक और कपिलमुनि के साथ भाजपा का एक बड़ा वोटबैंक शिफ्ट होने से ये सीट बसपा के लिए काफी आसान दिख रही है। अतीक के जेल में होने और बसपा की सरकार होने से तो मदद मिलेगी ही। और, बाहुबल में कपिलमुनि करवरिया भी कुछ कम तो हैं नहीं।

कपलिमुनि करवरिया के बसपा ज्वाइन कराने में अहम रोल अदा करने वाले पुराने कांग्रेसी नेता और अब बसपा की सरकार में लाल बत्ती पाने वाले अशोक बाजपेयी को उसी दिन इलाहाबाद लोकसभा सीट से बसपा ने प्रत्याशी बना दिया है। अशोक बाजपेयी के बेटे हर्षवर्धन बाजपेयी को बसपा ने शहर उत्तरी से टिकट दिया था और हर्षवर्धन हजार से भी कम वोटों से विधानसभा हार गए थे। वोटबैंक और इलाहाबाद और फूलपुर लोकसभा का परसीमन फिर से होने से बदले समीकरण से बसपा दोनों लोकसभा सीटों पर सबसे बेहतर प्रत्याशी खड़ा करने में कामयाब हो चुकी है। और, ये संकेत सफल हुए तो, इलाहाबाद की दोनों सीट जातकर बसपा नया इतिहास बनाएगी। साथ ही मेरा ये अनुमान और पक्का हो रहा है कि बसपा को इस बार 35-45 सीटें तो मिलेंगी ही।